दी अंडर-एचीवर


हमारे देश के मौजूदा प्रधानमंत्री का वो भाषण याद आता है मुझे जिसमे उन्होंने विमुद्रिकरण के विफल होने पर उन्हें जलाने की बात कही थी, मैं इस बात से बड़ा दुखी हूं, वो पूरे देश को बीजेपी वाले ना समझे, हमे उनसे  प्रेम करते है, स्नेह है और थोड़ा गुस्सा भी है। कुछ भी हो उन्हें जलाने की बात नही सोच सकते हम, बल्कि ईश्वर से प्राथना है कि वो लंबी उम्र जिए! तो विमुद्रिकरण विफल रहा, 99 प्रतिशत पैसे वापस आ गया काला धन उड़ गया, और जब काला धन है ही नही तो सब ईमानदार हो गए। क्यों?
लाखों नौकरिया गई, करोड़ो के व्यापार का नुकसान हुआ, देश की आर्थिक स्तिथि चरमरा गई, सौ से ज़्यादा लोग मरे और बाकी की दिक्कतों की कीमत कैसे लगाऊ समझ नही आ रहा, खैर इन सबके बाद यह सरकार और इनके निर्लज वित्त मंत्री इसका बचाव कैसे कर सकते है? क्यों सरकार को अपनी विफलता मानने में इतनी तकलीफ है । सिर्फ राजनीति करते आये है हमारे प्रधानमंत्री और उम्मीद है अगले 2 साल भी वो यही करेंगे ।
जिस स्तिथि से देश अभी गुज़र रहा है वो दयनीय है, जब बात नौकरी, विकास, किसान और सेहत पर होनी चाहिए तो हम सेना, वंदे मातरम, देशभक्ति जैसे प्रोपगैंडा लेकर बैठे है।
सच्ची ,देशक्ति देश सेवा में है ना कि इन मुद्दों पर चिल्लाने से।
भारतीय रिज़र्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार 14 दिसम्बर 2016 तक ही 80% पैसा वापस आ चुका था, फिर भी संसदीय समिति के सामने रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधि ने 13 जुलाई 2017 को पूरा पैसा ना गिने होने की बात कही थी,जिस  बैंक ने 80% हिस्सा मात्र 35 दिन मैं गिन लिया वो बाकी 20% के लिए 8 महीने का समय क्यों लगाती है? सरकार जिस प्रकार रिज़र्व बैंक का दुरुपयोग कर रही है वो चिंताजनक है, रघुराम राजन का गवर्नर पद छोड़ना भी इसका एक सबूत है।
मनमोहन सिंह को अंडर-एचीवर की उपाधि मिली थी, जल्द ही यह नरेंद्र मोदी जी को दे देनी चाहिए, वो इसके ज़्यादा हक़दार है!
खैर, इन सबके बावजूद मैं एक आम भारतीय की तरह मैं उम्मीद की किरण का इंतज़ार कर रहा हूँ!

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