आखिर क्यों! (Akhir Kyun)




















तो आज का दिन भी एक दिन के तौर पर गुज़र गया,
और रास्तों में फिर से खौफ बिखर गया
क्यों आज़ादी सिर्फ शब्दों में है
क्यों औरत अब भी पर्दो मैं है?

क्यों सवालो से हम कतराते है,
आज़ादी का सिर्फ ढोल बजाते हैं!
हम इन सवालों को भूल जाते हैं,
क्यों अर्से में सिर्फ एक बार याद आते हैं?

क्यों हम बदल नही रहे,
क्यों हम संभल नही रहे?
क्यों पर्दो में बंद है उसकी आज़ादी
क्यों घूंघट मैं दफन है उसकी आज़ादी ?

आखिर क्यों!

- हर्ष आदित्य

Comments

  1. Beautifully written 👌👌

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  2. अच्छी कविता। जारी रखें.....

    हमारी अच्छी सोच हमारे व्यवहार मे भी परिलक्षित होनी चाहिए। ये सही आजादी की तरफ एक कदम होगा।

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